एक डरावनी रात: वीरान हवेली का रहस्य
एक डरावनी रात: वीरान हवेली का रहस्य
यह कहानी है रोहन की, एक युवा फोटोग्राफर जो अपनी लीक से हटकर तस्वीरों के लिए जाना जाता था। उसकी नई परियोजना उसे झारखंड के धनबाद से दूर, एक घने जंगल के किनारे पर स्थित एक वीरान हवेली तक ले आई। लोग कहते थे कि उस हवेली में बुरी आत्माओं का वास है, कि जो भी रात में वहां रुका, कभी वापस नहीं लौटा। लेकिन रोहन इन बातों को अंधविश्वास मानता था और चुनौती स्वीकार करने को तैयार था।
हवेली तक पहुंचने का रास्ता कच्चा और ऊबड़-खाबड़ था। जैसे-जैसे वह हवेली के करीब पहुंचता गया, हवा में एक अजीब सी ठंडक घुलती गई, जैसे प्रकृति भी उसे आगे बढ़ने से रोक रही हो। हवेली विशाल थी, उसकी पुरानी दीवारें काई से ढकी थीं और टूटी हुई खिड़कियां भूतों की आंखों की तरह लग रही थीं। रोहन ने अपनी कार एक पेड़ के नीचे खड़ी की और अपना कैमरा गियर लेकर अंदर घुस गया।
अंदर का माहौल और भी भयावह था। धूल की मोटी परत हर चीज़ पर जमी थी, फर्नीचर सड़े हुए थे और मकड़ी के जाले हर कोने में लटके हुए थे। उसने अपना ट्राइपॉड सेट किया और तस्वीरें लेना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, हवेली के अंदर अंधेरा बढ़ने लगा और अजीब सी आवाजें आने लगीं – कभी हवा की सरसराहट, कभी दूर से किसी के रोने की आवाज, तो कभी किसी अज्ञात वस्तु के गिरने की। रोहन ने अपनी टॉर्च जलाई और उन आवाज़ों का पीछा करने लगा।
वह एक पुराने पुस्तकालय में पहुंचा। किताबें बिखरी हुई थीं और कुछ फटी हुई थीं। एक किताब जो बाकी किताबों से अलग लग रही थी, उसने उसे अपनी ओर खींचा। वह एक पुरानी डायरी थी, जिस पर "मृणालिनी" लिखा था। रोहन ने डायरी खोली। उसमें पुरानी, फीकी स्याही से कुछ लिखा था। पहली कुछ पंक्तियाँ ही पढ़कर उसके रोंगटे खड़े हो गए। मृणालिनी हवेली की पिछली मालकिन थी, जो कई साल पहले रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थी। डायरी में उसने अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों का जिक्र किया था – कैसे उसे हवेली में कुछ अजीबोगरीब महसूस होने लगा था, कैसे उसे लगा कि कोई अदृश्य शक्ति उसे देख रही है, और कैसे उसने हर रात कुछ फुसफुसाहटें सुनी थीं।
जैसे ही रोहन ने डायरी का आखिरी पन्ना पलटा, एक भयानक चीख ने हवेली को कंपा दिया। यह इतनी तेज थी कि रोहन का दिल एक पल के लिए रुक गया। उसकी टॉर्च फर्श पर गिर गई और बुझ गई। अंधेरे में, उसे लगा जैसे कोई उसके करीब आ रहा है। हवा में एक अजीब सी ठंडी, बासी गंध फैल गई। उसे लगा जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसके कंधे को छुआ हो।
पसीने से लथपथ, रोहन ने अपनी टॉर्च उठाई और उसे चारों ओर घुमाया। अचानक, एक पुरानी पेंटिंग पर उसकी नज़र पड़ी। पेंटिंग में एक खूबसूरत महिला की तस्वीर थी – मृणालिनी। लेकिन अब उसकी आँखें काली और खोखली लग रही थीं, जैसे वह उसे घूर रही हो। और, उसे ऐसा लगा जैसे उसके होंठ हिल रहे हों, कुछ कह रहे हों।
रोहन ने बिना सोचे समझे भागना शुरू कर दिया। वह सीढ़ियों से नीचे भागा, दरवाजों से टकराता हुआ बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। हवेली की हर चीज़ उसे रोक रही थी – फर्नीचर उसके रास्ते में आ रहे थे, दीवारों से हाथ निकलने लगे थे और हवा में भयानक हंसी गूंज रही थी। उसे लगा जैसे सैकड़ों आंखें उसे देख रही हैं।
जब वह मुश्किल से हवेली के मुख्य दरवाजे तक पहुंचा, तो एक तेज़ हवा का झोंका आया और दरवाजा ज़ोर से बंद हो गया। रोहन को लगा जैसे वह फंस गया है। पीछे मुड़कर देखा तो मृणालिनी की पेंटिंग अब उसके ठीक सामने थी, और इस बार, पेंटिंग की आंखें लाल चमक रही थीं! एक काली छाया पेंटिंग से निकली और उसकी ओर बढ़ने लगी।
रोहन ने अपनी आखिरी ताकत बटोरी और दरवाजे पर लात मारी। दरवाजा खुल गया और वह बाहर की ओर भागा। उसने अपनी कार की ओर दौड़ लगाई, बिना पीछे मुड़े देखे। इंजन स्टार्ट किया और तेज़ी से वहां से निकल गया।
सुबह होने तक वह धनबाद वापस पहुंच चुका था, लेकिन हवेली की यादें उसके साथ थीं। उसने फिर कभी वीरान जगहों पर जाने की हिम्मत नहीं की। वह जानता था कि कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जिन्हें छेड़ना नहीं चाहिए, और कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो सिर्फ़ डराने के लिए नहीं, बल्कि हमें यह बताने के लिए होती हैं कि अंधेरा हमेशा वहाँ मौजूद होता है, बस हमारे इंतज़ार में।
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